व्यापारी और बन्दर!
एक बार एक टोपियों का व्यापारी जंगल से गुजर रहा था। थकान मिटाने के लिए एक पेड़ के नीचे लेट गया। कुछ देर में ही उसे नींद आ गई। जब उसकी नींद खुली तो उसने देखा कि उसके थैले से सारी टोपियां गायब हैं। घबरा कर उसने यहां-वहां देखा तो उसे पेड़ के ऊपर बहुत सारे बन्दर उसकी टोपियां अपने सिर पर पहने हुए उछल कूद करते दिखे। व्यापारी को बंदरों की नकल करने की बात याद आई। तो उसने अपनी टोपी को सिर से निकाला। सारे बंदरों ने भी यही किया, फिर व्यापारी ने अपनी टोपी को जमीन पर फेंक दिया। सारे बंदरों ने भी अपनी-अपनी टोपियां जमीन पर फेक दीं। व्यापारी ने सारी टोपियां अपने थैले में भरीं और खुशी-खुशी अपने घर आ गया। उसने ये किस्सा अपने पोतों को सुनाया। बहुत साल बाद उसका पोता भी उसी जंगल से टोपियां लेकर गुजरा और एक पेड़ के नीचे सो गया, जब उसकी नींद खुली तो उसने देखा की उसकी सारी टोपियां थैले से गायब हैं और पेड़ पर बहुत सारे बन्दर उसकी टोपियां पहने उछल रहे हैं। पहले तो वो घबरा गया तभी उसे दादा की सुनाई कहानी याद आई। उसने मुस्कुराते हुए अपने सिर की टोपी उतारी और उसे जमीन पर फेंक दिया। तभी एक बन्दर कूदकर जमीन पर आया और उसकी टोपी उठाकर व्यापारी को थप्पड़ मारते हुए बोला- ओए व्यापारी, तू क्या समझता है, क्या हमारे दादा हमें कहानियां नहीं सुनाते? |