डाबला नीमकाथाना : आज कारगिल दिवस कारगिल का जिक्र आते ही हमारे जहन में भारत-पाकिस्तान के युद्ध की याद ताजा हो जाती है। भारत पाकिस्तान के बीच करीब 30 दिन चले कारगिल युद्ध के बाद आज ही के दिन 26 जुलाई 1999 को भारत को जीत मिली। यह दिन विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है इस युद्ध में शेखावाटी के कई जवानों ने देश के लिए अपनी जान गंवाई तो शेखावाटी के कई फौजियों ने इस युद्ध में अपना योगदान देकर इसके साक्षी बने।
राजेंद्र सिंह की कहानी उन्ही की जुबानी से
राजेंद्र सिंह जी ने। राजेंद्र की टुकड़ी ने तोलोलिंग पहाड़ी पर तिरंगा फहराया था। उन्होंने घुसपैठियों को खदेड़ते हुए एक पैर गवाँ दिया फिर भी हार नहीं मानी और कारगिल युद्ध में तोलोलिंग पहाड़ी पर मोर्चा सम्भाले रखा। तोलोलिंग पहाड़ी को खाली कराना बड़ी चुनौती था।
तोलोलिंग पर कब्जा पाने में भारतीय सेना पहली बार तो नाकाम रही। दोबारा राजपूताना राइफल्स की टुकड़ी को जिम्मेदारी मिली 11 जुलाई को करीब रात 8:00 बजे दुश्मन दोनों तरफ से गोलाबारी होने लगी। उन्होंने मोर्चा संभाला और सैनिको के साथ पहाड़ी पर चढ़ने लगे। रात को दुश्मन द्वारा बिछाई गई माइन में पैर आने से वे जख्मी हो गए तो सिर पर बंधे कपड़े से पैर को बांधा। आगे बढ़कर आखिर में तोलोलिंग पहाड़ी को कब्जे में कर ही लिया। राजेंद्र सिंह फिलहाल हिमाचल में निजी कंपनी में नौकरी कर रहे हैं।
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राजेंद्र सिंह की कहानी उन्ही की जुबानी से
राजेंद्र सिंह जी ने। राजेंद्र की टुकड़ी ने तोलोलिंग पहाड़ी पर तिरंगा फहराया था। उन्होंने घुसपैठियों को खदेड़ते हुए एक पैर गवाँ दिया फिर भी हार नहीं मानी और कारगिल युद्ध में तोलोलिंग पहाड़ी पर मोर्चा सम्भाले रखा। तोलोलिंग पहाड़ी को खाली कराना बड़ी चुनौती था।
तोलोलिंग पर कब्जा पाने में भारतीय सेना पहली बार तो नाकाम रही। दोबारा राजपूताना राइफल्स की टुकड़ी को जिम्मेदारी मिली 11 जुलाई को करीब रात 8:00 बजे दुश्मन दोनों तरफ से गोलाबारी होने लगी। उन्होंने मोर्चा संभाला और सैनिको के साथ पहाड़ी पर चढ़ने लगे। रात को दुश्मन द्वारा बिछाई गई माइन में पैर आने से वे जख्मी हो गए तो सिर पर बंधे कपड़े से पैर को बांधा। आगे बढ़कर आखिर में तोलोलिंग पहाड़ी को कब्जे में कर ही लिया। राजेंद्र सिंह फिलहाल हिमाचल में निजी कंपनी में नौकरी कर रहे हैं।