उदयपुरवाटी गाँव से 16 किमी. दुरी पर अरावली की सुरम्य पहाड़ियों की गोद में बना श्री शाकम्भरी माता का मंदिर प्रमुख धार्मिक स्थलों में स एक है। यहाँ के आम्रकुंज, स्वच्छ जल का झरना आने वाले व्यक्ति का मन मोहित करते हैं। इस शक्तिपीठ पर आरंभ से ही नाथ संप्रदाय वर्चस्व रहा है जो आज भी देखने को मिलता है।
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यहाँ देवी शंकरा, गणपति तथा धन स्वामी कुबेर की प्राचीन प्रतिमाएँ स्थापित हैं। यह मंदिर खंडेलवाल वैश्यों की कुल देवी के मंदिर के रूप में विख्यात है। इसमें लगे शिलालेख के अनुसार मंदिर के मंडप आदि बनाने में धूसर और धर्कट के खंडेलवाल वैश्यों सामूहिक रूप से धन इकट्ठा किया था। विक्रम संवत 749 के एक शिलालेख प्रथम छंद में गणपति, द्वितीय छंद में नृत्यरत चंद्रिका एवं तृतीय छंद में धनदाता कुबेर की भावपूर्ण स्तुति लिखी गई है।
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भक्तगण सालभर इस मंदिर में आते रहते हैं, लेकिन हिंदु कॅलेंड़र के अनुसार महिने के आठवे, नौवें तथा दसवें दिन देवी भगवती की विशेष प्रार्थना के होते हैं। नवरात्रों के दौरान नौ दिन का उत्सव यहाँ होता है। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव अपने भाइयों व परिजनों का युद्ध में वध (गोत्र हत्या) के पाप से मुक्ति पाने के लिए अरावली की पहाडिय़ों में रुके। युधिष्ठिर ने पूजा अर्चना के लिए देवी मां शर्करा की स्थापना की थी। वही अब शाकंभरी तीर्थ है।
देश भर में मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ हैं।
ऐसी मान्यता है कि माँ शाकम्भरी मानव के कल्याण के लिये धरती पर आयी थी। शाकम्भरी देवी ने 100 वर्षो तक तप किया था। महिने के अंत में एक बार शाकाहारी भोजन कर तप किया था। ऐसी निर्जीव जगह जहाँ पर सौ वर्ष तक पानी भी नहीं था। वहाँ पर पेड़ और पौधे उत्पन्न हो गये। यहाँ पर साधु-सन्त माता का चमत्कार देखने के लिये आये।
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इस घटना के बाद से माता का नाम शाकम्भरी माता पड़ा। पुराणिक कथा के अनुसार यहाँ पर शंकराचार्य आये और तपस्या की थी। शाकम्भरी देवी तीन देवी ब्रह्मीदेवी, भीमादेवी और शीतलादेवी का शक्तिरूप है ।मां शाकंभरी धन-धान्य का आशीर्वाद देती हैं। इनकी अराधना से घर हमेशा शाक यानी अन्न के भंडार से भरा रहता है।
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यहाँ देवी शंकरा, गणपति तथा धन स्वामी कुबेर की प्राचीन प्रतिमाएँ स्थापित हैं। यह मंदिर खंडेलवाल वैश्यों की कुल देवी के मंदिर के रूप में विख्यात है। इसमें लगे शिलालेख के अनुसार मंदिर के मंडप आदि बनाने में धूसर और धर्कट के खंडेलवाल वैश्यों सामूहिक रूप से धन इकट्ठा किया था। विक्रम संवत 749 के एक शिलालेख प्रथम छंद में गणपति, द्वितीय छंद में नृत्यरत चंद्रिका एवं तृतीय छंद में धनदाता कुबेर की भावपूर्ण स्तुति लिखी गई है।
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भक्तगण सालभर इस मंदिर में आते रहते हैं, लेकिन हिंदु कॅलेंड़र के अनुसार महिने के आठवे, नौवें तथा दसवें दिन देवी भगवती की विशेष प्रार्थना के होते हैं। नवरात्रों के दौरान नौ दिन का उत्सव यहाँ होता है। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव अपने भाइयों व परिजनों का युद्ध में वध (गोत्र हत्या) के पाप से मुक्ति पाने के लिए अरावली की पहाडिय़ों में रुके। युधिष्ठिर ने पूजा अर्चना के लिए देवी मां शर्करा की स्थापना की थी। वही अब शाकंभरी तीर्थ है।
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देश भर में मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ हैं।
- पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है।
- दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है
- तीसरा स्थान उत्तरप्रदेश के मेरठ के पास सहारनपुर में 40 किलोमीटर की दूर पर स्थित है।
ऐसी मान्यता है कि माँ शाकम्भरी मानव के कल्याण के लिये धरती पर आयी थी। शाकम्भरी देवी ने 100 वर्षो तक तप किया था। महिने के अंत में एक बार शाकाहारी भोजन कर तप किया था। ऐसी निर्जीव जगह जहाँ पर सौ वर्ष तक पानी भी नहीं था। वहाँ पर पेड़ और पौधे उत्पन्न हो गये। यहाँ पर साधु-सन्त माता का चमत्कार देखने के लिये आये।
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इस घटना के बाद से माता का नाम शाकम्भरी माता पड़ा। पुराणिक कथा के अनुसार यहाँ पर शंकराचार्य आये और तपस्या की थी। शाकम्भरी देवी तीन देवी ब्रह्मीदेवी, भीमादेवी और शीतलादेवी का शक्तिरूप है ।मां शाकंभरी धन-धान्य का आशीर्वाद देती हैं। इनकी अराधना से घर हमेशा शाक यानी अन्न के भंडार से भरा रहता है।