Cover Story By- Neha
जब भारत में हॉन्टेड प्लेस का जिक्र होता है तो उनमें भानगढ़ के किले (bhangarh fort) का नाम सबसे पहले आता है। जहां सूरज ढलते ही किले में बुरी आत्माओ का साया मँडराने लगता है। जिस कारण लोग इसे “भूतो का भानगढ़” भी कहते है। 16-17 वि शताब्दी में बसने के बाद भानगढ़ खूब फलाफूला लेकिन जब इसको साधु का श्राप लगा तो यह इतिहास के पन्नो में दफ़न हो। आइये आज उन्ही पन्नो को खोलते हुए आपके सामने रखते हैं। भानगढ किले का इतिहास बड़ा ही रोचक रहा है।
• भानगढ़ एक परिचय –
भानगढ़ का किला राजस्थान अलवर जिले में स्थित है। इस क़िले को सन् 1573 में आमेर के राजा भगवंत दास ने बनवाया था। विश्व प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय उधान (Sariska National Park) से कुछ ही दुरी पर भानगढ़ किला पड़ता है। इस किले में कई दर्शनीय मंदिर भी है जिसमे भगवान गोपीनाथ, सोमेश्वर, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख हैं।
इन मंदिरों के खम्भो और दीवारों पर की गई नक़्क़ाशी से इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि यह समूचा क़िला अपने जिवंत काल में कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा। भानगढ़ तीन पहड़ियों से घिरा है जो इसको पहले बाहरी हमलों से सुरक्षा प्रदान करती थी।
• भानगढ़ किले का इतिहास –
भानगढ किले का निर्माण सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में आमेर के राजा भगवंत दास के द्वारा करवाया गया। सन् 1573 में यह बनकर अपने पूर्ण स्वरूप में आया। भगवंत दास के छोटे बेटे और मुगल शहंशाह अकबर का सेनापति मानसिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपना रिहाइशी स्थान बना लिया।
उस समय की बात करें तो भानगढ की जनसंख्या तकरीबन 10,000 थी। 300 साल तक भानगढ़ खूब फला-फुला बाद में इस किले को तांत्रिक सिंधु सेवड़ा का श्राप लग गया। और ये सदा सदा के लिए भुतहा किला बन कर रह गया।
• भानगढ किले पर कालें जादूगर सिंघिया के श्राप की कहानी –
भानगढ़ का किला जो देखने में जितना शानदार लगता है उसका अतीत भी उतना ही भयानक है। भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बेहद ही सुन्दर और रूपवान थी। मात्र 18 की उम्र में ही राजकुमारी रत्नावती के रूप के चर्चे पुरे राजवाड़े में फैले थे। इस कारण पुरे राज्य से उसके लिए विवाह के प्रस्ताव आने शुरू हो गए।
एक दिन राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ इत्र के लिये बाजार में एक दूकान पर गई। वहीँ पर खड़ा सिंधु सेवड़ा नाम का व्यक्ति इसकी अठखेलियों को गौर से निहार रहा था। सिंधु सेवड़ा भी उसी राज्य की प्रजा में से एक था। सिंधु ने काले जादू में महारथ हाशिल कर रखी थी इसीलिए लोग उसे सिंधु सेवड़ा के नाम से जानते थे।
ऐसा कहा जाता है कि सिंधु सेवड़ा राजकुमारी को पहली बार देखते ही उस पर मंत्रमुग्ध होकर राजकुमारी को पाने की ठान ली। उसी समय जब राजकुमारी ने जो इत्र की बोतल पसंद की उस पर वंशीकरण मंत्र का काला जादू का लगा दिया। लेकिन एक विश्वसनीय व्यक्ति ने इसके बारे में राकुमारी इतला कर दी।
राजकुमारी रत्नावती ने इस इत्र की बोतल को एक पत्थर पर पटक कर तोड़ डाली। इत्र मंत्रित गिरने के कारण पत्थर फिसल कर सिंधु सेवड़ा के पीछे चल पड़ा। इस पत्थर से तांत्रिक कुचला गया और उसने वहीं दम तोड़ दिया।
लेकिन मरने से पहले तांत्रिक सिंधु सेवड़ा ने श्राप दिया कि “इस किले में रहने में रहने वाले सभी लोग जल्दी ही मर जाएंगे और वो दुबारा जन्म नहीं ले सकेंगे ताउम्र उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेंगी।”
इस तांत्रिक की मौत के कुछ दिनों बाद ही अजबगढ़ और भानगढ़ के बीच भीषण युद्ध हुआ। जिसमे किले में रहने वाले सभी लोग मारे गए। यहाँ तक कि राजकुमारी रत्नावती भी इस श्राप से नहीं बच सकी और किले में ही मारी गई।
एक ही किले में इतने बड़े कत्लेआम के बाद चारो तरफ मौत की चीखे गूंज रही थी। इस ददर्नाक मंजर के बाद किले में चारो तरफ लाशो के सिवाय कुछ नजर नहीं आ रहा था। लोगो के बेमौत मारे जाने के कारण उनकी रूहें आज भी इस किले में भटक रहीं हैं।
• किलें में सूर्यास्त के बाद प्रवेश की अनुमति नहीं –
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के द्वारा यहाँ की गई खुदाई से इस बात के पर्याप्त सबूतों के आधार पर आसानी से कहा जा सकता है कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल रहा है। वर्तमान में यह किला भारत सरकार की देख रेख के अधीन है।
हर समय किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (ASI) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने यहाँ पर आने वाले लोगो को सख्त हिदायत दे रखी है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके कोई भी ना रुके। सूर्यास्त के बाद रुकना खतरे से खाली नहीं है इसी कारण किसी भी व्यक्ति को यहाँ रुकने की साफ़ साफ़ मनाही है।
• किलें पर रूहों का कब्जा –
इस किले में हुए कत्लेआम के बाद बेमौत मारे गए लोगो की आत्माएं आज भी भटकती है। एक बार भारत सरकार ने अर्धसैनिक बल की एक टुकड़ी यहां पर तैनात भी की थी ताकि किले में पर होने वाली घटनाओ का जायजा लेकर कुछ पता लगाया जा सके लेकिन वो भी असफल रही।
इस किले में आज भी कोई रात को अकेला होता है, तो वह तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकता है।
राज्य सरकार ने बाद में किले की जाँच करने के लिए एक पैरा नॉर्मल टीम का गठन किया। टीम ने रात को किले का सर्वे किया। उस दैरान भी टीम में एक महिला की तबियत अचानक बिगड़ जाने के कारण यह सर्वे बीच में ही बंद करना पड़ा।
इसके अलावा इस किले भीतर बने छोटे कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुडि़यों के खनकने की भी आवाजें सुनने में आई हैं।
किले के पिछले हिस्सें में जहां एक छोटा सा दरवाजा है, उस दरवाजें के आस-पास बहुत ही अंधेरा रहता है। कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। यहाँ शाम के वक्त अचानक से ही बहुत सन्नाटा छा जाता है। रात के समय में पसरा सन्नाटा किले के माहौल को ओर भी भयावह बना देता है।
भानगढ़ की इस कवर स्टोरी के साथ हम आप पर छोड़ते है कि आप भुतहा जगहों में कितना विश्वास करते हो।
जानकारी अच्छी लगे तो फ्रेंड्स के साथ शेयर जरूर करें।
जब भारत में हॉन्टेड प्लेस का जिक्र होता है तो उनमें भानगढ़ के किले (bhangarh fort) का नाम सबसे पहले आता है। जहां सूरज ढलते ही किले में बुरी आत्माओ का साया मँडराने लगता है। जिस कारण लोग इसे “भूतो का भानगढ़” भी कहते है। 16-17 वि शताब्दी में बसने के बाद भानगढ़ खूब फलाफूला लेकिन जब इसको साधु का श्राप लगा तो यह इतिहास के पन्नो में दफ़न हो। आइये आज उन्ही पन्नो को खोलते हुए आपके सामने रखते हैं। भानगढ किले का इतिहास बड़ा ही रोचक रहा है।
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भानगढ़ का किला राजस्थान अलवर जिले में स्थित है। इस क़िले को सन् 1573 में आमेर के राजा भगवंत दास ने बनवाया था। विश्व प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय उधान (Sariska National Park) से कुछ ही दुरी पर भानगढ़ किला पड़ता है। इस किले में कई दर्शनीय मंदिर भी है जिसमे भगवान गोपीनाथ, सोमेश्वर, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख हैं।
इन मंदिरों के खम्भो और दीवारों पर की गई नक़्क़ाशी से इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि यह समूचा क़िला अपने जिवंत काल में कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा। भानगढ़ तीन पहड़ियों से घिरा है जो इसको पहले बाहरी हमलों से सुरक्षा प्रदान करती थी।
• भानगढ़ किले का इतिहास –
भानगढ किले का निर्माण सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में आमेर के राजा भगवंत दास के द्वारा करवाया गया। सन् 1573 में यह बनकर अपने पूर्ण स्वरूप में आया। भगवंत दास के छोटे बेटे और मुगल शहंशाह अकबर का सेनापति मानसिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपना रिहाइशी स्थान बना लिया।
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उस समय की बात करें तो भानगढ की जनसंख्या तकरीबन 10,000 थी। 300 साल तक भानगढ़ खूब फला-फुला बाद में इस किले को तांत्रिक सिंधु सेवड़ा का श्राप लग गया। और ये सदा सदा के लिए भुतहा किला बन कर रह गया।
• भानगढ किले पर कालें जादूगर सिंघिया के श्राप की कहानी –
भानगढ़ का किला जो देखने में जितना शानदार लगता है उसका अतीत भी उतना ही भयानक है। भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बेहद ही सुन्दर और रूपवान थी। मात्र 18 की उम्र में ही राजकुमारी रत्नावती के रूप के चर्चे पुरे राजवाड़े में फैले थे। इस कारण पुरे राज्य से उसके लिए विवाह के प्रस्ताव आने शुरू हो गए।
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एक दिन राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ इत्र के लिये बाजार में एक दूकान पर गई। वहीँ पर खड़ा सिंधु सेवड़ा नाम का व्यक्ति इसकी अठखेलियों को गौर से निहार रहा था। सिंधु सेवड़ा भी उसी राज्य की प्रजा में से एक था। सिंधु ने काले जादू में महारथ हाशिल कर रखी थी इसीलिए लोग उसे सिंधु सेवड़ा के नाम से जानते थे।
ऐसा कहा जाता है कि सिंधु सेवड़ा राजकुमारी को पहली बार देखते ही उस पर मंत्रमुग्ध होकर राजकुमारी को पाने की ठान ली। उसी समय जब राजकुमारी ने जो इत्र की बोतल पसंद की उस पर वंशीकरण मंत्र का काला जादू का लगा दिया। लेकिन एक विश्वसनीय व्यक्ति ने इसके बारे में राकुमारी इतला कर दी।
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राजकुमारी रत्नावती ने इस इत्र की बोतल को एक पत्थर पर पटक कर तोड़ डाली। इत्र मंत्रित गिरने के कारण पत्थर फिसल कर सिंधु सेवड़ा के पीछे चल पड़ा। इस पत्थर से तांत्रिक कुचला गया और उसने वहीं दम तोड़ दिया।
लेकिन मरने से पहले तांत्रिक सिंधु सेवड़ा ने श्राप दिया कि “इस किले में रहने में रहने वाले सभी लोग जल्दी ही मर जाएंगे और वो दुबारा जन्म नहीं ले सकेंगे ताउम्र उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेंगी।”
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इस तांत्रिक की मौत के कुछ दिनों बाद ही अजबगढ़ और भानगढ़ के बीच भीषण युद्ध हुआ। जिसमे किले में रहने वाले सभी लोग मारे गए। यहाँ तक कि राजकुमारी रत्नावती भी इस श्राप से नहीं बच सकी और किले में ही मारी गई।
एक ही किले में इतने बड़े कत्लेआम के बाद चारो तरफ मौत की चीखे गूंज रही थी। इस ददर्नाक मंजर के बाद किले में चारो तरफ लाशो के सिवाय कुछ नजर नहीं आ रहा था। लोगो के बेमौत मारे जाने के कारण उनकी रूहें आज भी इस किले में भटक रहीं हैं।
• किलें में सूर्यास्त के बाद प्रवेश की अनुमति नहीं –
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के द्वारा यहाँ की गई खुदाई से इस बात के पर्याप्त सबूतों के आधार पर आसानी से कहा जा सकता है कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल रहा है। वर्तमान में यह किला भारत सरकार की देख रेख के अधीन है।
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हर समय किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (ASI) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने यहाँ पर आने वाले लोगो को सख्त हिदायत दे रखी है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके कोई भी ना रुके। सूर्यास्त के बाद रुकना खतरे से खाली नहीं है इसी कारण किसी भी व्यक्ति को यहाँ रुकने की साफ़ साफ़ मनाही है।
• किलें पर रूहों का कब्जा –
इस किले में हुए कत्लेआम के बाद बेमौत मारे गए लोगो की आत्माएं आज भी भटकती है। एक बार भारत सरकार ने अर्धसैनिक बल की एक टुकड़ी यहां पर तैनात भी की थी ताकि किले में पर होने वाली घटनाओ का जायजा लेकर कुछ पता लगाया जा सके लेकिन वो भी असफल रही।
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इस किले में आज भी कोई रात को अकेला होता है, तो वह तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकता है।
राज्य सरकार ने बाद में किले की जाँच करने के लिए एक पैरा नॉर्मल टीम का गठन किया। टीम ने रात को किले का सर्वे किया। उस दैरान भी टीम में एक महिला की तबियत अचानक बिगड़ जाने के कारण यह सर्वे बीच में ही बंद करना पड़ा।
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इसके अलावा इस किले भीतर बने छोटे कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुडि़यों के खनकने की भी आवाजें सुनने में आई हैं।
किले के पिछले हिस्सें में जहां एक छोटा सा दरवाजा है, उस दरवाजें के आस-पास बहुत ही अंधेरा रहता है। कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। यहाँ शाम के वक्त अचानक से ही बहुत सन्नाटा छा जाता है। रात के समय में पसरा सन्नाटा किले के माहौल को ओर भी भयावह बना देता है।
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