वायुसेना के इकलौते मार्शल अर्जन सिंह का शनिवार रात निधन हो गया। वे 98 वर्ष के थे। अर्जन जी महज 44 साल की उम्र में एयर चीफ बनकर 1965 में पाकिस्तान से हुई जंग में अपनी अहम भूमिका निभाई । आदेश मिलने के सिर्फ 26 मिनट बाद उन्हाेंने पाक पर हमला बोल दिया था। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ‘अफसोस है कि पाक से जंग जल्द खत्म हो गई। हम मजबूत स्थिति में थे। जंग कुछ दिन और चलती तो पाक को मिटा देते।’ अर्जन सिंह का जन्म पाकिस्तान के फैसलाबाद में ही हुआ था।
वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह दूसरे विश्व युद्ध से लेकर अपने आखिरी युद्ध तक अजेय रहे। 1965 में तो जब रक्षा मंत्री वाईबी चव्हाण ने उनसे पूछा कि पाकिस्तान पर हमला करने के लिए आपको कितना वक्त चाहिए। अर्जन सिंह ने जवाब दिया- एक घंटे लेकिन महज 26 मिनट बाद हमारे लड़ाकू विमान पाकिस्तान की तरफ उड़ान भर चुके थे।
अर्जन सिंह को यह युद्ध जल्दी खत्म होने का हमेशा मलाल रहा। उन्होंने एक इंटरव्यू में पायलट बनने से लेकर फाइव स्टार रैंक तक पहुंचने की कहानी बताई थी। इंटरव्यू के अंश: ‘मेरा जन्म पाकिस्तान के लायलपुर (अब फैसलाबाद) में हुअा। घर लाहौर-कराची एयर रूट में था। प्लेन को उड़ते देखकर ही पायलट बनने का सपना देख लिया।
मुझे 1938 में महज 19 की उम्र में फ्लाइट कैडेट चुना गया। ट्रेनिंग दो साल की थी। पर इससे पहले ही दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया और हमें युद्ध में भेज दिया गया। क्रैश लैंडिंग से लेकर कोर्ट मार्शल तक बहुत सी बातें हैं, जिन्हें याद कर सीना चौड़ा हो जाता है। पर इस बात का अफसोस भी है कि जब हम 1965 में युद्ध जीत चुके थे और पाकिस्तान को तबाह करने की स्थिति में थे, तभी युद्ध विराम हो गया। जबकि हम उस वक्त पाकिस्तान के किसी भी हिस्से को नष्ट कर सकते थे। हमारे पास मेहर सिंह और केके मजूमदार जैसे बेहतरीन पायलट थे। जबकि पाकिस्तान अंबाला पार करने की स्थिति में भी नहीं था।
दिल्ली- मुंबई-अहमदाबाद पहुंचना तो उसके सपने से भी दूर था। पर हमारे नेताआें ने युद्ध खत्म करने का निर्णय लिया।’
दो लड़ाइयां लड़ीं, अपने दौर में 60 तरह के विमान उड़ाए
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वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह दूसरे विश्व युद्ध से लेकर अपने आखिरी युद्ध तक अजेय रहे। 1965 में तो जब रक्षा मंत्री वाईबी चव्हाण ने उनसे पूछा कि पाकिस्तान पर हमला करने के लिए आपको कितना वक्त चाहिए। अर्जन सिंह ने जवाब दिया- एक घंटे लेकिन महज 26 मिनट बाद हमारे लड़ाकू विमान पाकिस्तान की तरफ उड़ान भर चुके थे।
अर्जन सिंह को यह युद्ध जल्दी खत्म होने का हमेशा मलाल रहा। उन्होंने एक इंटरव्यू में पायलट बनने से लेकर फाइव स्टार रैंक तक पहुंचने की कहानी बताई थी। इंटरव्यू के अंश: ‘मेरा जन्म पाकिस्तान के लायलपुर (अब फैसलाबाद) में हुअा। घर लाहौर-कराची एयर रूट में था। प्लेन को उड़ते देखकर ही पायलट बनने का सपना देख लिया।
मुझे 1938 में महज 19 की उम्र में फ्लाइट कैडेट चुना गया। ट्रेनिंग दो साल की थी। पर इससे पहले ही दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया और हमें युद्ध में भेज दिया गया। क्रैश लैंडिंग से लेकर कोर्ट मार्शल तक बहुत सी बातें हैं, जिन्हें याद कर सीना चौड़ा हो जाता है। पर इस बात का अफसोस भी है कि जब हम 1965 में युद्ध जीत चुके थे और पाकिस्तान को तबाह करने की स्थिति में थे, तभी युद्ध विराम हो गया। जबकि हम उस वक्त पाकिस्तान के किसी भी हिस्से को नष्ट कर सकते थे। हमारे पास मेहर सिंह और केके मजूमदार जैसे बेहतरीन पायलट थे। जबकि पाकिस्तान अंबाला पार करने की स्थिति में भी नहीं था।
दिल्ली- मुंबई-अहमदाबाद पहुंचना तो उसके सपने से भी दूर था। पर हमारे नेताआें ने युद्ध खत्म करने का निर्णय लिया।’
दो लड़ाइयां लड़ीं, अपने दौर में 60 तरह के विमान उड़ाए
- 44 साल की उम्र में एयर चीफ बने। 50 साल के हुए तो रिटायर हो गए। 2002 में वायुसेना का मार्शल रैंक दिया गया। इनसे पहले दो सेना प्रमुख करियप्पा और मानेकशॉ ही मार्शल बनाए गए थे।
- उन्होंने बर्मा में जापानी सेना के खिलाफ ब्रिटिश हवाई दस्ते का नेतृत्व किया। इसके लिए उन्हें ब्रिटिश सेना का फ्लाइंग क्रॉस पुरस्कार मिला था।
- 15 अगस्त 1947 को आजादी समारोह के वक्त अर्जन सिंह के नेतृत्व में ही वायु सेना के 100 विमानों की टुकड़ी लाल किले के ऊपर से निकली थी।
- पहले वायु सेना प्रमुख थे, जो इस पद पर रहते हुए विमान उड़ाते रहे और अपनी फ्लाइंग कैटेगरी को बरकरार रखा। कार्यकाल में 60 तरह के विमान उड़ाए।