पुलिस ने भुवनेश्वर से कटक तक कबूतरों से संदेश भिजवाया, 72 साल से ये अभ्यास चल रहा, इस बार भी सफल रहा
न्यूज़ रिपोर्ट- सोशल मीडिया के जमाने में भी ओडिशा पुलिस कबूतर के जरिए संदेश भेजने के पुराने तरीके को जिंदा रखे हुए है। उनके पास 50 कबूतरों का एक झुंड है, जो खास तौर पर एक जगह से दूसरी जगह संदेश ले जाने के लिए प्रशिक्षित है। ओडिशा पुलिस रोज तो इन कबूतरों का इस्तेमाल नहीं करती, लेकिन इन्हें इस तरह से तैयार जरूर रखती है कि जरूरत पड़ने पर काम लिया जा सके।
इन 50 कबूतरों का हालिया ट्रायल सफल रहा है। पुलिस ने कबूतरों के जरिए भुवनेश्वर के ओयूएटी ग्राउंड से कटक तक संदेश भेजा। कबूतरों ने सफलतापूर्वक तय जगह पर संदेश पहुंचा दिया। कबूतरों को इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इनटेक) की मदद से प्रशिक्षण दिया जाता है।
कबूतरों को जब उड़ाया गया तो स्कूली बच्चों को भी बुलाया गया, ताकि वो इस तरीके को देख सकें। इस प्रैक्टिस का उद्देश्य है- डिजास्टर मैनेजमेंट।
इनटेक के स्टेट कन्वेनर एबी त्रिपाठी बताते हैं कि- "ओडिशा पुलिस ने ये अभ्यास 1946 में शुरू किया था। उस वक्त हमने 200 कबूतरों के जरिए कम्युनिकेशन शुरू किया था। अब पुलिस के पास उतने कबूतर तो नहीं हैं, ना ही उतने कबूतरों की जरूरत है। लेकिन जितने भी कबूतर हैं वो अच्छी तरह प्रशिक्षित हैं।
1982 में बंकी जिले में भीषण बाढ़ आई थी। सारे कम्युनिकेशन सिस्टम ध्वस्त हो गए। उस वक्त ओडिशा पुलिस के कबूतरों ने ही अलग- अलग लोकेशन पर संदेश भेजने का काम किया। इसी तरह 1999 में सुपर साइक्लोन आने के बाद कबूतरों ने ही कम्युनिकेशन का काम किया था। यानी ये कबूतर हमारे डिजास्टर मैनेजमेंट सिस्टम को भी मजबूत करने का काम करते हैं। साथ ही हम एक पुरानी परंपरा का संरक्षण भी कर रहे हैं।’
75 किमी तक की रफ्तार से उड़ सकते हैं कबूतर
एबी त्रिपाठी बताते हैं कि ओडिशा के कई क्षेत्र अभी भी मेनस्ट्रीम कम्युनिकेशन से दूर हैं। यहां जितनी देर में पुलिस पहुंच पाएगी, उससे कम समय में कबूतर उड़कर पहुंच सकते हैं।
कबूतर 75 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकते हैं। रोड नेटवर्क से कटे क्षेत्रों में ये तरीका कारगर है। कबूतर की उम्र करीब 20 साल तक होती है। जिस कबूतर को एक बार प्रशिक्षित कर दिया, वो लंबे समय तक काम दे सकता है।
न्यूज़ रिपोर्ट- सोशल मीडिया के जमाने में भी ओडिशा पुलिस कबूतर के जरिए संदेश भेजने के पुराने तरीके को जिंदा रखे हुए है। उनके पास 50 कबूतरों का एक झुंड है, जो खास तौर पर एक जगह से दूसरी जगह संदेश ले जाने के लिए प्रशिक्षित है। ओडिशा पुलिस रोज तो इन कबूतरों का इस्तेमाल नहीं करती, लेकिन इन्हें इस तरह से तैयार जरूर रखती है कि जरूरत पड़ने पर काम लिया जा सके।
इन 50 कबूतरों का हालिया ट्रायल सफल रहा है। पुलिस ने कबूतरों के जरिए भुवनेश्वर के ओयूएटी ग्राउंड से कटक तक संदेश भेजा। कबूतरों ने सफलतापूर्वक तय जगह पर संदेश पहुंचा दिया। कबूतरों को इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इनटेक) की मदद से प्रशिक्षण दिया जाता है।
कबूतरों को जब उड़ाया गया तो स्कूली बच्चों को भी बुलाया गया, ताकि वो इस तरीके को देख सकें। इस प्रैक्टिस का उद्देश्य है- डिजास्टर मैनेजमेंट।
इनटेक के स्टेट कन्वेनर एबी त्रिपाठी बताते हैं कि- "ओडिशा पुलिस ने ये अभ्यास 1946 में शुरू किया था। उस वक्त हमने 200 कबूतरों के जरिए कम्युनिकेशन शुरू किया था। अब पुलिस के पास उतने कबूतर तो नहीं हैं, ना ही उतने कबूतरों की जरूरत है। लेकिन जितने भी कबूतर हैं वो अच्छी तरह प्रशिक्षित हैं।
1982 में बंकी जिले में भीषण बाढ़ आई थी। सारे कम्युनिकेशन सिस्टम ध्वस्त हो गए। उस वक्त ओडिशा पुलिस के कबूतरों ने ही अलग- अलग लोकेशन पर संदेश भेजने का काम किया। इसी तरह 1999 में सुपर साइक्लोन आने के बाद कबूतरों ने ही कम्युनिकेशन का काम किया था। यानी ये कबूतर हमारे डिजास्टर मैनेजमेंट सिस्टम को भी मजबूत करने का काम करते हैं। साथ ही हम एक पुरानी परंपरा का संरक्षण भी कर रहे हैं।’
75 किमी तक की रफ्तार से उड़ सकते हैं कबूतर
एबी त्रिपाठी बताते हैं कि ओडिशा के कई क्षेत्र अभी भी मेनस्ट्रीम कम्युनिकेशन से दूर हैं। यहां जितनी देर में पुलिस पहुंच पाएगी, उससे कम समय में कबूतर उड़कर पहुंच सकते हैं।
कबूतर 75 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकते हैं। रोड नेटवर्क से कटे क्षेत्रों में ये तरीका कारगर है। कबूतर की उम्र करीब 20 साल तक होती है। जिस कबूतर को एक बार प्रशिक्षित कर दिया, वो लंबे समय तक काम दे सकता है।