नीमकाथाना न्यूज़ टीम की धरोहर स्पेशल रिपोर्ट ✍️
भौगोलिक स्थिति- सीकर जिला मुख्यालय से पूर्व की ओर 56 किलोमीटर की दुरी पर बसा हुआ गुहाला गाँव नीमकाथाना मण्डल में 27.680 उत्तरी अक्षांश तथा 75.630 पूर्वी देशान्तर पर स्थित है।
शेखावाटी की कांटली नदी के किनारे बसा हुआ यह गाँव, उत्तर में उदयपुरवाटी एवं खेतड़ी तहसील से, पूर्व में नीमकाथाना तहसील से तथा दक्षिण में श्रीमाधोपुर तहसील से घिरा हुआ हैं।
इतिहास- यह झुन्झुनूं-उदयपुरवाटी के भोजराजजी के वंशजों के अधीन एक छोटा ठिकाना था। परन्तु सम्पूर्ण रुप से इस गांव को बसाने तथा यहां दुर्ग निर्माण का श्रेय नवलगढ़ एवं मण्डावा के राजा ठाकुर नवलसिंह (सन् 1742-1780) को जाता है, जिन्होनें अपने अन्तिम समय में गुहाला गाँव के दक्षिण-पश्चिमी कोने में कंकड़ व मिट्टी से ऊँचाई बनवाकर एक छोटी पहाड़ी पर इस दुर्ग का निर्माण सन् 1778 में करवाया था।
दुर्ग स्थापत्य- यह दुर्ग लगभग 2500 वर्गमीटर में फैला हुआ है। इस दुर्ग को ’धूलकोट दुर्ग’ भी कहा जाता है, क्योंकि इस दुर्ग के चारों ओर बडे़-बड़े धूल के टीले बने हुए हैं। अगर शत्रु सेना द्वारा इस दुर्ग पर आक्रमण किया जाता था तो उस समय 105 तोप के गोले इन धूल के टीलों में फँस जाते थे, जिससे दुर्ग को कोई क्षति नहीं पहुँचती थी।
इस दुर्ग के चारों ओर परकोटा बना हुआ है, दुर्ग में प्रवेश करने के लिए मुख्य विशाल द्वार बना हुआ है, इस द्वार की ऊँचाई लगभग अठारह से बीस फीट है। सुरक्षा की दृष्टि से इस दुर्ग की सबसे पहली मंजिल पूरी तरह धूल से ढ़की हुई है। वर्तमान में यहां जाने के सारे रास्ते बंद है। इसी मंजिल में शस्त्रागार बना हुआ है।
इस दुर्ग में बाहर व अन्दर की ओर दो समानान्तर परकोटे बनाये गये तथा इन दोनों परकोटों के बीच कई मकान बनाये गये व उन मकानों और परकोटों को मिट्टी से ढ़क दिया गया, इसलिए यह ऊपर से मिट्टी का टीला ही प्रतीत होता है।
सामरिक दृष्टि से यह किला बहुत ही महत्वपूर्ण रहा। इसमें चार सुरंग भी बतायी जाती थी। दुर्ग में प्रवेश करते ही उत्तर दिशा में कचहरी (न्यायालय) बनी हुई है, जिसमें जाने के लिए अलग से सीढ़ियां बनाई गई है। कचहरी के सामने पर्याप्त खुला मैदान है, यह मैदान जनसामान्य के लिए बना हुआ था जहां राजा कचहरी से अपना न्याय सुनाते थे। आगे चलकर हस्तिशाला व अश्वशाला बनी हुई है, कहा जाता है कि यहां उन्नत किस्म के घोडे़ थे।
इसी पंक्ति में साथ में ही कारागार भी बने हुए हैं। आगे चलने पर अन्दर की तरफ एक मुख्य द्वार और बना हुआ है, इस द्वार में प्रवेश करने के पश्चात् बाँयी और ओर राजा का महल , मंत्रियों व सैनिकों के आवासगृह बने हुए हैं। इनके पास ही अलग से दो मंजिला जनाना ड्योढ़ी का निर्माण भी किया गया है।
यहाँ एक शिलालेख भी मिला है लेकिन वर्तमान में यह समाप्त हो गया है। इस दुर्ग के चारों ओर विशाल उद्यान बना हुआ था, लेकिन वर्तमान में गुहाला गाँव का विस्तार होने के कारण यह उद्यान समाप्त हो गया है। अगर शत्रु सेना द्वारा इस दुर्ग पर आक्रमण किया जाता था तो उस समय तोप के गोले इसके चारों ओर के धूल के टीलों में फँस जाते थे, जिससे दुर्ग को कोई क्षति नही पहुँचती थी।
लेखक- नीमकाथाना न्यूज़ टीम
आप भी अपनी कृति नीमकाथाना न्यूज़.इन के सम्पादकीय सेक्शन में लिखना चाहते हैं तो अभी व्हाट्सअप करें- +91-9079171692 या मेल करें sachinkharwas@gmail.com
भौगोलिक स्थिति- सीकर जिला मुख्यालय से पूर्व की ओर 56 किलोमीटर की दुरी पर बसा हुआ गुहाला गाँव नीमकाथाना मण्डल में 27.680 उत्तरी अक्षांश तथा 75.630 पूर्वी देशान्तर पर स्थित है।
शेखावाटी की कांटली नदी के किनारे बसा हुआ यह गाँव, उत्तर में उदयपुरवाटी एवं खेतड़ी तहसील से, पूर्व में नीमकाथाना तहसील से तथा दक्षिण में श्रीमाधोपुर तहसील से घिरा हुआ हैं।
इतिहास- यह झुन्झुनूं-उदयपुरवाटी के भोजराजजी के वंशजों के अधीन एक छोटा ठिकाना था। परन्तु सम्पूर्ण रुप से इस गांव को बसाने तथा यहां दुर्ग निर्माण का श्रेय नवलगढ़ एवं मण्डावा के राजा ठाकुर नवलसिंह (सन् 1742-1780) को जाता है, जिन्होनें अपने अन्तिम समय में गुहाला गाँव के दक्षिण-पश्चिमी कोने में कंकड़ व मिट्टी से ऊँचाई बनवाकर एक छोटी पहाड़ी पर इस दुर्ग का निर्माण सन् 1778 में करवाया था।
दुर्ग स्थापत्य- यह दुर्ग लगभग 2500 वर्गमीटर में फैला हुआ है। इस दुर्ग को ’धूलकोट दुर्ग’ भी कहा जाता है, क्योंकि इस दुर्ग के चारों ओर बडे़-बड़े धूल के टीले बने हुए हैं। अगर शत्रु सेना द्वारा इस दुर्ग पर आक्रमण किया जाता था तो उस समय 105 तोप के गोले इन धूल के टीलों में फँस जाते थे, जिससे दुर्ग को कोई क्षति नहीं पहुँचती थी।
इस दुर्ग के चारों ओर परकोटा बना हुआ है, दुर्ग में प्रवेश करने के लिए मुख्य विशाल द्वार बना हुआ है, इस द्वार की ऊँचाई लगभग अठारह से बीस फीट है। सुरक्षा की दृष्टि से इस दुर्ग की सबसे पहली मंजिल पूरी तरह धूल से ढ़की हुई है। वर्तमान में यहां जाने के सारे रास्ते बंद है। इसी मंजिल में शस्त्रागार बना हुआ है।
इस दुर्ग में बाहर व अन्दर की ओर दो समानान्तर परकोटे बनाये गये तथा इन दोनों परकोटों के बीच कई मकान बनाये गये व उन मकानों और परकोटों को मिट्टी से ढ़क दिया गया, इसलिए यह ऊपर से मिट्टी का टीला ही प्रतीत होता है।
सामरिक दृष्टि से यह किला बहुत ही महत्वपूर्ण रहा। इसमें चार सुरंग भी बतायी जाती थी। दुर्ग में प्रवेश करते ही उत्तर दिशा में कचहरी (न्यायालय) बनी हुई है, जिसमें जाने के लिए अलग से सीढ़ियां बनाई गई है। कचहरी के सामने पर्याप्त खुला मैदान है, यह मैदान जनसामान्य के लिए बना हुआ था जहां राजा कचहरी से अपना न्याय सुनाते थे। आगे चलकर हस्तिशाला व अश्वशाला बनी हुई है, कहा जाता है कि यहां उन्नत किस्म के घोडे़ थे।
इसी पंक्ति में साथ में ही कारागार भी बने हुए हैं। आगे चलने पर अन्दर की तरफ एक मुख्य द्वार और बना हुआ है, इस द्वार में प्रवेश करने के पश्चात् बाँयी और ओर राजा का महल , मंत्रियों व सैनिकों के आवासगृह बने हुए हैं। इनके पास ही अलग से दो मंजिला जनाना ड्योढ़ी का निर्माण भी किया गया है।
यहाँ एक शिलालेख भी मिला है लेकिन वर्तमान में यह समाप्त हो गया है। इस दुर्ग के चारों ओर विशाल उद्यान बना हुआ था, लेकिन वर्तमान में गुहाला गाँव का विस्तार होने के कारण यह उद्यान समाप्त हो गया है। अगर शत्रु सेना द्वारा इस दुर्ग पर आक्रमण किया जाता था तो उस समय तोप के गोले इसके चारों ओर के धूल के टीलों में फँस जाते थे, जिससे दुर्ग को कोई क्षति नही पहुँचती थी।
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