मावंडा @ पुरातत्व विभाग द्वारा पूरी तरह सरंक्षण के अभाव में ऐतिहासिक धरोहर कालगति का शिकार हो रही हैं। इसका जीता जागता उदाहरण है नीमकाथाना शहर से मात्र 7 किमी दूर मावंडा-मंढोली के बीच प्राचीन छतरियां व चबूतरे जो दुर्घष युद्ध के लिए प्रसिद्ध रही हैं।
इतिहास के अनुसार 14 दिसंबर 1767 को भरतपुर के जाट राजा जवाहर सिंह और जयपुर राज्य की सेनाओं में घमासान युद्ध लडा गया। हालांकि इस युद्ध में जयपुर राज्य की जीत हुई किन्तु यह युद्ध जयपुर के इतिहास के युद्धों मे भीषणतम माना जाता है क्योंकि इस युद्ध में दोनों पक्षों के लगभग 10 हजार सैनिक मारे गये । साथ ही कई ठिकानों मे तो पुरुष सदस्यों के रूप में आठ- दस वर्ष के बालक ही परिवार में बचे थे । रण क्षेत्र मे निर्मित भग्न छतरियॉ, चबूतरे, देवलियॉ, भोमियॉजी 225 वर्ष पूर्व लडे गये युद्ध का आभास करवाते हैं। इसका उल्लेख मावंडा-मंढोली के शिलालेखों के अतिरिक्त बिशनपुरा निवासी बारहठ ईश्वरीदान रचित कूर्मविजय नामक लघु काव्य मे भी मिलता है।
5 छतरी, 3 चबूतरे
रण क्षेत्र मे निर्जन स्थान पर राजपूत मुगल शैली में निर्मित वीर यौद्धाओं की पांच छतरियॉ और तीन चबूतरे आज भी इतिहास को बयां करते हैं। कई चबूतरों के भग्न अवशेष भी जहां तहां नजर आते हैं । जयपुर इतिहास व शिलालेखों पर लिखे लेखों के अनुसार जयपुर के दीवान हरसहाय व गुरूसहाय खत्री की छतरियां, जयपुर के सेनापति राव दलेल सिंह के साथ पुत्र कुॅवर लक्ष्मण सिंह की छतरियों के पास ही पौत्र भॅवर राजसिंह का चबूतरा बना है। आठ या छ: खंभो से युक्त हैं गुम्बद के नीचे अवतारों के चित्र भी अंकित हैं। छतरियों पर फारसी भाषा में लेख खुदे हुए हैं। इनके साथ ही कई मूक अवशेष भी विद्यमान हैं।
इतिहास के अनुसार 14 दिसंबर 1767 को भरतपुर के जाट राजा जवाहर सिंह और जयपुर राज्य की सेनाओं में घमासान युद्ध लडा गया। हालांकि इस युद्ध में जयपुर राज्य की जीत हुई किन्तु यह युद्ध जयपुर के इतिहास के युद्धों मे भीषणतम माना जाता है क्योंकि इस युद्ध में दोनों पक्षों के लगभग 10 हजार सैनिक मारे गये । साथ ही कई ठिकानों मे तो पुरुष सदस्यों के रूप में आठ- दस वर्ष के बालक ही परिवार में बचे थे । रण क्षेत्र मे निर्मित भग्न छतरियॉ, चबूतरे, देवलियॉ, भोमियॉजी 225 वर्ष पूर्व लडे गये युद्ध का आभास करवाते हैं। इसका उल्लेख मावंडा-मंढोली के शिलालेखों के अतिरिक्त बिशनपुरा निवासी बारहठ ईश्वरीदान रचित कूर्मविजय नामक लघु काव्य मे भी मिलता है।
5 छतरी, 3 चबूतरे
रण क्षेत्र मे निर्जन स्थान पर राजपूत मुगल शैली में निर्मित वीर यौद्धाओं की पांच छतरियॉ और तीन चबूतरे आज भी इतिहास को बयां करते हैं। कई चबूतरों के भग्न अवशेष भी जहां तहां नजर आते हैं । जयपुर इतिहास व शिलालेखों पर लिखे लेखों के अनुसार जयपुर के दीवान हरसहाय व गुरूसहाय खत्री की छतरियां, जयपुर के सेनापति राव दलेल सिंह के साथ पुत्र कुॅवर लक्ष्मण सिंह की छतरियों के पास ही पौत्र भॅवर राजसिंह का चबूतरा बना है। आठ या छ: खंभो से युक्त हैं गुम्बद के नीचे अवतारों के चित्र भी अंकित हैं। छतरियों पर फारसी भाषा में लेख खुदे हुए हैं। इनके साथ ही कई मूक अवशेष भी विद्यमान हैं।
संरक्षण मिले तो बन सकता है पर्यटन स्थल
नीमकाथाना शहर से सात किमी दूर मांकड़ी फाटक से महज 1000 मीटर पर मावंडा-मंढोली के बीच स्थित यह स्थान धरोहर के रूप में पर्यटन स्थल बन सकता है। यह स्थान दिल्ली मारवाड मेवाड का व्यापारिक मार्ग भी रहा है। उर्दू व महाजनी लिपि के लेख व्यापारियों व सेना के ठहरने की ओर संकेत करते हैं। रियासत काल में जयपुर रियासत ट्रस्ट द्वारा दीपक जलाने के लिए पारिश्रमिक भी दिया जाता रहा जो कालान्तर में बन्द कर दिया गया। सरकार इसे प्राचीन धरोहर में शामिल करे, पुरातत्व विभाग व पर्यटन विभाग संरक्षण दे तो यहां ऐतिहासिक पर्यटन स्थल बनने की प्रबल संभावनाएं हैं।
शरारती तत्वों ने धरोहर को पहुंचाया नुकसान
युद्ध स्थल पर बनी छतरियों में धन छुपा होने अफवाहों को सच मानकर गुम्बद, चबूतरों को वर्तमान में काफी क्षत विक्षत कर दिया गया है। संरक्षण के अभाव कारण यह धरोहर अब पर्यटन की बजाय असामाजिक तत्वों व शराबियों का अड्डा बन चुकी है। मावंडा मंढोली का यह ऐतिहासिक युद्ध उस समय लड़ें गए युद्धों में से एक प्रमुख युद्ध स्थल है, जिसके संरक्षण की जरूरत ना तो आम नागरीको ने समझी ना राज्य सरकार का कभी इस तरफ ध्यान गया।
संरक्षण मिले तो बन सकता है पर्यटन स्थल
शहर से सात किमी दूर मावंडा-मंढोली के बीच स्थित यह स्थान धरोहर के रूप में पर्यटन स्थल बन सकता है। यह स्थान दिल्ली मारवाड मेवाड का व्यापारिक मार्ग भी रहा है। उर्दू व महाजनी लिपि के लेख व्यापारियों व सेना के ठहरने की ओर संकेत करते हैं। रियासत काल में जयपुर रियासत ट्रस्ट द्वारा दीपक जलाने के लिए पारिश्रमिक भी दिया जाता रहा जो कालान्तर में बन्द कर दिया गया। सरकार इसे प्राचीन धरोहर में शामिल करे, पुरातत्व विभाग व पर्यटन विभाग संरक्षण दे तो यहां ऐतिहासिक पर्यटन स्थल बनने की प्रबल संभावनाएं हैं।
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रिपोर्ट- सचिन खरवास नीमकाथाना न्यूज़ टीम
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