2008 में स्टे के बावजूद भी भूमि का भौतिक स्वरूप बदला
नीमकाथाना। मूलभूत अधिकारों का जब हनन होता है अपना हक मरता हुआ देख व्यक्ति की आंखें जब न्याय को ढूंढती हैं तब व्यक्ति न्याय के केंद्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाता है किंतु विचारण के दौरान ही जब व्यक्ति को हतोत्साहित करने वाले कृत्य कारित होते हैं तो पीड़ित का मनोबल वैसे ही टूट जाता है न्याय की आस दम तोड़ने लगती है। कुछ ऐसा ही मामला हाल ही में कस्बा पाटन में प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिल जाएगा। काफी पुराने राजस्व अभिलेख में गलत रूप से सहवन से खोला गया नामांतरण के विरुद्ध अधीनस्थ न्यायालयों से चलता चलता प्रकरण माननीय उच्च न्यायालय खंडपीठ जयपुर के पास वर्तमान में विचाराधीन है जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा अस्थाई निषेधाज्ञा का आदेश पारित कर रखा है ।
परिवादी सुरेश कुमार बागवान ने बताया कि न्यायालय द्वारा दिनांक 12 मई 2008 से उक्त विवादास्पद भूमि में यथास्थिति रखे जाने का आदेश पारित कर रखा है बावजूद इसके न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करते हुए उक्त विवादास्पद भूमि में राजस्व एवं प्रशासनिक अधिकारियों की साज से अनेकों विक्रय पत्र निष्पादित हो चुके, निर्माण कार्य संपूर्ण होकर बड़ी-बड़ी इमारतें बन चुकी, भूमि का भौतिक स्वरूप पूर्णतया बदल चुका, आदेशों की अवहेलना का स्तर यहां तक पहुंच गया कि उक्त विवादित भूमि के खसरा संख्याओं में नामांतरण तक खोले जा चुके हैं । वर्तमान की अगर बात करें तो प्रशासन की नाक के नीचे उक्त विवादित भूमि पर जोर शोर से निर्माण कार्य संचालित हो रहा है । मुख्य मार्ग पर हो रहे निर्माण कार्य से कौन विज्ञ नहीं है किंतु निर्माणकर्ता अपने रसूख, राजनीतिक प्रभावशालीता, बाहुबल एवं चांदी की चाबुक से खुले में न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं ।