नीमकाथाना(अशोक स्वामी) रंगों का त्योहार होली मस्ती और रसियो का त्योहार है। चंग और ढप की थाप फाल्गुनी मस्ती में जहां चार चांद लगाती है, तो नीम का थाना के गांव भूदोली में पिछले 40 वर्षों से एक परिवार चंग और ढप का निर्माण कर इनमें रंग भर रहा है। बदलते जमाने के साथ सब कुछ बदला। बाजार में प्लास्टिक के चंग और ढप भी आए, लेकिन अपने हाथों की कारीगरी से तैयार किए गांव भूदोली के इस परिवार के चंग और ढप शहर में ही नहीं, बल्कि देश के अलग-अलग भागों में भी जाते हैं। अंग्रेज रंगीला का परिवार पिछले 40 साल से चंग और ढप का निर्माण कर रहा है।
इस तरह तैयार होता चंग और ढप
ढप को तैयार करने में इन कारीगरों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। फाल्गुन से एक से दो माह पूर्व ही कारीगर इन्हें तैयार करने में जुट जाते हैं। ढप भेड़ और बकरे की खाल से बनाए जाते हैं, जिसे लखनऊ और मेरठ से लाया जाता है। उसके बाद ढप बनाने का काम शुरू होता है। इसके लिए खाल को धोकर सुखाया जाता है। फिर आम की लकड़ी की फ्रेम पर खाल को चढ़ाया जाता है और आंकड़े के दूध से फिर इसे धोया जाता है। जब यह सुख कर तैयार हो जाता है। होली से पूर्व एक चंग की कीमत साइज के अनुसार 1000 से 1200 रुपए होती है और होली के दिन चंग के खरीदार बढ़ जाने से इसकी कीमत 1200 से 1800 रुपए भी हो जाती है।
चंग तैयार करते कारीगर
ढप बनाने वाले कैलाश राव ने बताया कि पहले ढप के खरीददार अधिक होते थे। अब दिनों दिन इनके खरीददारों में कमी आयी है। बदलते वक्त के साथ मटेरियल लाने में भी खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसका मटेरियल भी दूर दराज से लाना पड़ता है। रही सही कसर इस बार कोरोना महामारी ने पूरी कर दी, जिसके चलते फागोत्सव के कार्यक्रम अब जिले में ना के बराबर हो रहे हैं, जिसके चलते भी इन चंग और ढपो कि बिक्री पर असर पड़ा है।
ढोलक, नगाड़ा का भी निर्माण
ढप, चंग का निर्माण करने वाले इस परिवार के आवश्यक काम ढप की बिक्री से ही निकलते है। शेखावाटी में फाग उत्सव के रसिये और सामाजिक संस्थाओं के लोग चंग की खरीददारी अवश्य करते हैं आमजन की ढप की मांग की पूर्ति करता अंग्रेज रंगीला का परिवार के सदस्य एक से डेढ माह तक इसे बनाने में जुटे रहते हैं। इस परिवार के सदस्य कहते हैं कि वे चंग के अलावा ढोलक, नगाड़ा व नगारी,हारमोनियम बनाते हैं।