संरक्षण के अभाव में ऐतिहासिक छतरियां जमीदोंज होने लगी
चीफ एडिटर मनीष टांक की ग्राउंड रिपोर्ट
नीमकाथाना: ग्राम मावंडा व मंढोली के मध्य स्थित ऐतिहासिक प्राचीन छतरियां उपेक्षा की शिकार होकर अपना अस्तित्व खो रही हैं। इनका संरक्षण के अभाव में ये ऐतिहासिक छतरियां जमीदोंज नजर आने लगी।
इतिहासकार व सह आचार्य डॉ. मदनलाल मीणा ने बताया कि विक्रम संवत 1824 (सन् 1767) जयपुर के महाराजा माधोसिंह तथा भरतपुर के शासक जवाहर सिंह की सेनाओं के मध्य नीमकाथाना के नजदीक मावंडा नामक स्थान पर भीषण युद्ध हुआ।
इस युद्ध में जयपुर शासक की विजय हुई। युद्ध में मारे गए योद्धाओं की समाधि के ऊपर वि.सं. 1825 (1768) ईस्वी में निर्माण किया गया। उसे स्थानीय लोग मोर्चा के नाम से पुकारते हैं। यहां छः छतरियां है। राजा हरसहाय की छतरी सबसे आकर्षण व बेहतरीन स्थापत्य कला का नमूना है। राजा दलेलराम की छतरियां भी यहां बनी है। इन छतरियों में संबंधित राजाओं के पद चिन्ह लगाए गए हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में पगल्या कहते हैं। इन छतरियों के निर्माण का अध्ययन करने पर पता चलता है कि स्थापत्य कला मुगल शैली से प्रभावित थी।
छतरियों में काली स्याही से उर्दू में लिखे हैं लेख
जिस स्थान पर छतरियों का निर्माण किया गया है। उस स्थान के समीप से प्राचीन समय में महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग गुजरता था। छतरियों में देवनागरी लिपि व उर्दू में काली स्याही से लेख लिखे हैं। जिनमें 1840,1841,1871,1881ईस्वी का जिक्र किया गया है।
टूटे पड़े हैं छज्जे नक्काशी
छतरियों की वर्तमान हालत उपेक्षित है। छतरियों के छज्जे टूट गए हैं। जो छतरियां आज भी अच्छी स्थिति में खड़ी है। उनकी संबंधित विभाग द्वारा कोई सार संभाल नहीं की जा रही है।
खतरे में आकर्षक कलाकृति
छतरियों के गुंबद के अंदरूनी हिस्सों में बेहतरीन कलाकृति की गई है। जो समय के साथ देख रेख के अभाव में अपना अस्तित्व खो रही है। चुना झड़ जाने से छतरियां बदरंग दिखने लगी हैं।
बना असामाजिक तत्वों का अड्डा
सुरक्षा की कोई व्यवस्था न होने के कारण यहां शाम होते-होते शराबियों का जमावड़ा लगने लगता है। छतरियों पर चारों ओर शराब की टूटी बोतलें व रैपर पड़े हुए हैं। ऐसे में पर्यटक स्वयं को भयभीत महसूस करते हैं।
अकूत सम्पदा का भ्रम छतरियों का काल बना
असामाजिक तत्वों द्वारा सभी छतरियों के हिस्सों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया है। क्षत्रियों के पास बने चबूतरे को नुकीलें औजारों की सहायता से खोद दिया गया है। स्थानीय निवासी ने बताया कि अकूत संपदा होने के भ्रम में यहां चोरों ने छतरियों को नुकसान पहुंचाया है।
राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया जाए
इतिहासकार डॉ. मीणा ने बताया कि 2006 में एसएनकेपी महाविद्यालय में इतिहास विभाग ने भारतीय पुरातत्व संरक्षण का राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया था। स्थानीय लोगों ने छतरियों को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित करने की मांग की थी। इस संबंध में तत्कालीन राज्य सरकार ने घोषणा भी की थी। लेकिन घोषणा को अमल में नहीं लाया गया।
अतिक्रमणकारी अब खातेदार
जिस स्थान पर छतरियां बनी है अब वहां फसलें लहलहा रही है। छतरियां अब खेतों की सीमा में सीमित होकर रह गई है। एक छतरी के तो चारों तरफ से तारबंदी करके अतिक्रमण कर लिया गया है। बाकी छतरियां असामाजिक तत्वों की चपेट में आ गई है। ऐतिहासिक स्थल देखरेख के अभाव में दम तोड़ता नजर आ रहा है।
यह भी पढ़ें - मावंडा-मंढोली का ऐतिहासिक युद्ध (14 दिसंबर 1767)