स्पेशल कवर स्टोरी: सचिन खरवास
नीमकाथाना: करीब 50 साल पहले बंद हुई दिल्ली जोधपुर ट्रेन की दिल्ली से जैसलमेर वाया नीमकाथाना, रींगस होते हुए एक बार फिर से ट्रेन (रूणिचा एक्सप्रेस) की शुरुआत हो चुकी। इस बार ट्रेन की शुरुआत दिल्ली, जोधपुर जैसलमेर के बीच हुई।
आपको बता दें कि 50 साल पहले ट्रेन दिल्ली जोधपुर के बीच चलती थी। इसी ट्रेन से यात्री मारवाड़ के लिए यात्रा करते थे। 1975 में ये ट्रेन बंद हो गई थी। उसके बाद यात्री शटल का प्रयोग करते थे। लेकिन जिलेवासियों के लिए आज का दिन बेहद खुशी का दिन हैं। आज शुक्रवार दोपहर सवा 12 बजे नीमकाथाना ट्रेन पहुंची। जिसका जिले के लोगों ने लोको पायलट व स्टेशन अधीक्षक का माला व मिठाई खिलाकर जोरदार स्वागत किया गया।
सितम्बर 1975 में मारवाड़ स्टीम ट्रेन का अंतिम सफर
01 नवंबर 1953 में जन्मे नीमकाथाना वार्ड 02 निवासी नाथूराम कुमावत ने बताया कि 01 सितम्बर 1975 का दिन इस ट्रेन का आखरी सफ़र था उस दिन मैंने कुचामन से नीमकाथाना की यात्रा की, जब कुचामन सिटी से आटा चक्की लाने के लिए सफर किया था।
आटा चक्की लाते समय ट्रेन में बैठे तो उस दिन भयंकर बरसात हो रही थी, जिस वजह से पटरियां लगभग एक फीट पानी के नीचे थी, बरसात के कारण ट्रेन काफ़ी लेट थी। जब वहां से यात्रा शुरू हुई बहुत धीमे गति से ट्रेन उस पूरे ट्रैक से निकाली गई। उस दिन का इस ट्रेन का आखरी सफर था, फिर ट्रैक सुधार अन्य कारणों से इस ट्रेन की सेवा बंद कर दी गई।
उस जमाने में सामान पर लगती थी चूंगी
कुमावत कहते है कि अंग्रेज चले गए मगर उनके वक्त में लगाई जानी वाली चुंगी भी नीमकाथाना रेलवे स्टेशन से प्रत्येक यात्री से ली जाती थी। तरीका जैसे आज कस्टम अधिकारी हर एक चीज की जॉच करते है वैसे नगर पालिका नीमकाथाना द्वारा ली जाने वाली चूंगी के लिए रेलवे स्टेशन अधिकारी अपना स्टांप लगा देने के बाद व्यक्ति को अपना सामान ले जाने देते थे।
1975 में कुमावत ने आटा चक्की की चुकाई थी चूंगी राशि
चूंगी के लिए नाथूराम कुमावत ने बताया कि जितनी बार ट्रेन से यात्रा कर जो व्यापारिक सामान लाते उन पर चूंगी दी जाती थी। जितनी बार यात्रा कर लाए जाने वाले सामान पर हर बार चूंगी दी गई। चूंगी नहीं देने पर सामान को जब्त कर लिया जाता था। उस जमाने में अधिकतम चूंगी की राशि 10 रूपये 81 पैसे दी जिस की रसीद आज भी उनके पास सुरक्षित है।
नीमकाथाना से जोधपुर के लिए रात करीब 2 बजकर 30 पर चलती थी स्टीम ट्रेन
कुमावत ने बताया कि दिल्ली जोधपुर ट्रेन का समय नीमकाथाना से रात करीब 2 बजकर 30 मिनट था, वहीं जोधपुर से चलकर नीमकाथाना रात 10 बजे पहुंचती थी। इस ट्रेन में कई बार सफर किया था।
कोयले से चलती थी ट्रेन, नीमकाथाना में थी इंजन में भरे जाने वाले पानी की व्यवस्था
नीमकाथाना मीटर गेज ट्रैक पर कोयले की स्टीम ट्रेन चलती थी। यहां इस ट्रैक पर स्टीम इंजनों में भरे जाने वाले पानी की व्यवस्था नीमकाथाना, रींगस, बधाल और फुलेरा में होती थी। यहां स्टीम इंजनों में काम में लिए जाने वाले कोयले की स्क्रैप(राख) यहां बड़ी मात्रा में मिट्टी के टीले होने से यहां डाली जाती थी।
लोगो का अधूरा रहा सफर, पुराने दिनों की कहानियां चर्चा में
स्टीम ट्रेन में सफर का कारवां उस रात थम गया जब भयंकर बारिश की वजह से ट्रेन को बंद करना पड़ा। नीमकाथाना में मारवाड़ की तरफ से आने वाले कई यात्री ट्रेन से आ तो गए लेकिन वापिस उसी ट्रेन से जाने का जाने सफर उनका अधूरा ही रह गया। आज उनकी यादें ताजा हो उठी, स्टीम ट्रेन के उस अधूरे सफर की चर्चाएं आज लोगों की स्मृतियों का प्रतिबिंब उनके मानस पटल पर बन रहा है। पुराने दिनों की यादें आज ताजा हो उठी।