बदहाल आजतक नहीं मिला कोई भी सम्मान, यादव बोलें: मंदिर वहीं बनाने का वादा पूरा हुआ
स्पेशल कवर स्टोरी: इंद्राज योगी
नीमकाथाना: अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है। 22 जनवरी 2024 यानी कल सोमवार का दिन किसी दिवाली से कम नहीं होने वाला हैं। इस दिन रामलला मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की जानी है। इसी बीच बलिदानी कारसेवकों को याद करके दुनिया भर के लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
आज हम आपको ऐसे कारसेवक की कहानी उन्हीं की जुबानी लिखने जा रहे हैं। हम बात कर रहे हैं नीमकाथाना के नजदीकी ढाणी पुछलावाली के ओमप्रकाश यादव की। 6 दिसम्बर 1992 के दिन इन्होने कई लाखों कारसेवकों की भीड़ में विवादित ढांचा के ऊपरी भाग पर भगवा झंडा फहराया था। उन्होंने बताया कि टेलीविजन में प्रसारित हुई कारसेवकों की मौत की खबर ने मेरा मन बदल दिया। गर्भवती पत्नी को छोड़कर मैं 1992 की कारसेवा में चला गया।
धार्मिक संगठन से न जुड़े हुए बन गए कारसेवक
ओमप्रकाश यादव ने कारसेवा के दिनों को याद करते हुए बताया कि 30 अक्टूबर 1990 के दिन कारसेवकों पर हुई गोलीबारी का प्रसारण देखा। उन दिनों बहुत कम घरों में ही टी.वी. होते थे। जब उन्होंने शहर में एक टी.वी. पर प्रसारित होती खबर के बारे में जाना तो उनका हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति इतना क्रूर कैसे हो सकता है। कार सेवकों को गोलियों से भूना जा रहा था। ऐसे में उन्होंने रामकाज के लिए कारसेवक के रूप में अयोध्या जाने की ठानी। ओमप्रकाश ने बताया कि वह भी किसी धार्मिक संगठन से नहीं जुड़े थे।
नीमकाथाना रेलवे स्टेशन पर कारसेवकों का किया जा रहा था स्वागत
6 दिसंबर 1992 में कारसेवा में गए ओमप्रकाश बताते हैं कि 16 सदस्य कारसेवा का दल जब नीमकाथाना रेलवे स्टेशन से अयोध्या जाने के लिए तैयार हुआ तो नीमकाथाना से बड़ी संख्या में स्वागत करने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ी। रेलवे स्टेशन के दोनों तरफ लोगों का हुजूम स्वागत करने को आतुर था। ओमप्रकाश ने बताया कि उन्होंने पहला पड़ाव दिल्ली में डाला। जहां उन्होंने नित्य कर्म कर खाना खाया। बाद में दिल्ली के रास्ते अयोध्या पहुंचे।
सरयू नदी से लाएं मिट्टी, अवशेषों को नदी में बहाया
ओमप्रकाश ने बताया कि अयोध्या में धर्मेंद्र आचार्य को "मंदिर वहीं बनाएंगे" का नारा देने के बाद कारसेवकों में जोश भर गया। नीमकाथाना से पहुंचे कारसेवकों को सरयू नदी के किनारे से जल व मिट्टी लाने का काम सौंपा गया। ओमप्रकाश ने बताया कि मुझे छोड़कर सभी साथ के लोग सरयू नदी से मिट्टी लाने चले गए और मैं कारसेवकों के साथ विवादित ढांचा के पास ही लाइन में लग गया। जहां बड़ी संख्या में कारसेवक एकत्रित थे। बाद में कारसेवकों ने विवादित ढांचे के अवशेषों को सरयू नदी में बहा दिया।
ओमप्रकाश ही सबसे पहले विवादित ढांचा के ऊपरी हिस्से पर चढ़े
ओमप्रकाश ने बताया कि विवादित ढांचा के पास ही बने रामलला के मंदिर के दर्शन कर उन्होंने चूरू, मध्य प्रदेश व एक अज्ञात कारसेवक के साथ विवादित ढांचा के ऊपरी हिस्से पर चढ़ने की योजना बनाई। दर्शन करने के बहाने वे अपने तीनों साथियों के साथ आगे बढ़े। विवादित ढांचा के ठीक पास ही नीम के पेड़ों पर चढ़कर वे झट-पट विवादित ढांचा के ऊपर हिस्से पर बनी गुंबद पर चढ़ गए। गुंबद पर चढ़ते ही कारसेवकों की भीड़ में अचानक जोश का स्रोता फूट गया। विवादित ढांचा के ऊपर चढ़े ओमप्रकाश ने अपने तन पर पहनी भगवा शर्ट उतार कर झंडे के समान फहरा दी। देखते ही देखते अन्य कारसेवक भी विवादित ढांचा के ऊपर चढ़ गए। कुछ घंटे में ही कारसेवकों ने विवादित ढांचा को जमींदोज कर दिया।
ओमप्रकाश को नहीं मिला सम्मान, निमंत्रण तक नहीं
1990 व 1992 में रामलला की कारसेवा में गए कई गुमनाम चेहरे आज भी अपनी पहचान के मोहताज हैं। वह भी ऐसे समय में जहां कारसेवकों को चुन-चुन कर "श्री राम जन्मभूमि तीर्थ " द्वारा न्यौता दिया जा रहा है। ओमप्रकाश ने आंखों में आंसू भरते हुए कहा कि कारसेवा के बाद अयोध्या से आने के दौरान 16 सदस्यों के दल का स्वागत-सम्मान की बातें तो हुई लेकिन राम के सैनिकों को लोगों ने जल्द ही भुला दिया। उन्होंने कहा कि विडंबना है "श्री राम जन्मभूमि तीर्थ" से जुड़े लोगों ने भी उन्हें याद नहीं किया।
"मंदिर वहीं बनाएंगे" हमारा वादा पूरा हुआ
ओमप्रकाश राम मंदिर बनने से बेहद खुश है। ओमप्रकाश ने मंदिर निर्माण के लिए श्रेय कारसेवा में अपने बलिदानों को उत्सर्ग करने वाले व कारसेवा में जुटने वाले कारसेवकों को दिया। ओमप्रकाश ने कहा कि कारसेवकों ने अपनी जान पर खेल कर विवादित ढांचा को नेस्ता नाबूद कर दिया।
यादव ने अयोध्या के विकास के लिए मोदी और योगी सरकार की भी तारीफ की। ओमप्रकाश ने कहा कि वर्तमान सरकार को अयोध्या में कारसेवक स्मारक भी बनाना चाहिए जो वर्तमान व भविष्य में राम भक्तों की प्रेरणा बन सकेगा।
कोई सूचना नही मिलने पर गांव में रहा गमगीन माहौल
करीब 20 दिन अयोध्या में कारसेवक के रूप में रहने के बाद ओमप्रकाश के गांव में अफवाहों का माहौल बन गया। ओमप्रकाश के परिवार को अनहोनी का भय सताने लगा। संचार के साधनों का अभाव व ओम प्रकाश की कोई सुध सूचना नहीं मिलने से परिजनों की चिंता बढ़ गई। 9 दिसंबर 1992 को लौटे ओमप्रकाश ने जब गांव में सन्नाटा पसरा देखा तो उनकी आंखों में आंसू आ गए।