1. लोहागर्ल धाम
लोहार्गल भारत के राजस्थान राज्य में शेखावाटी इलाके के नीमकाथाना जिले से 56 कि॰मी॰ दूर आड़ावल पर्वत की घाटी में बसे उदयपुरवाटी कस्बे से करीब दस कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। लोहार्गल का अर्थ है- वह स्थान जहाँ लोहा गल जाए। पुराणों में भी इस स्थान का जिक्र मिलता है। नीमकाथाना जिले में अरावली पर्वत की शाखायें उदयपुरवाटी तहसील से प्रवेश कर खेतड़ी, सिंघाना तक निकलती हैं, जिसकी सबसे ऊँची चोटी 1051 मीटर लोहार्गल में है।
तीर्थराज लोहार्गल में अनेक मंदिर है, और अपने आप में हर मंदिर की अपनी महिमा है, कोई मंदिर विशेष नहीं है और ना ही कोई मंदिर आम है,इन सब मंदिरों व गौमुख तथा वादियों को मिलाकर ही संपूर्ण लोहार्गल बनता है। आम श्रद्धालुओं के लिए सभी मंदिर प्रमुख है।
2. मनसा माता
नीमकाथाना से 19 किलोमीटर दूर खोह- गुड़ा ग्राम के पहाड़ो में मनसा माता पीठ स्थित है। प्रकृति माँ की गोद में “खोह“ से लगभग 5 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में गगन चुंबी पर्वत श्रंखलाओं की गोद में विराजमान है। नवरात्रों में मां के दरबार में हजारों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं।
माँ के प्राकट्य के बारे में बताते है की लगभग 500 साल पूर्व से यहाँ पर लोगों का आगमन शुरू हुआ, पूर्व में यहाँ पहाड़ों में गडरिये पशुओं को चराते थे। यह क्षेत्र जंगल की लकड़ी व् पशुओं के चारे का उत्तम चारागाह था। मंदिर के बनाने के पीछे गड़रिये और माता के प्रकट होने की किवदंती जुड़ी है। पहाड़ी की कंदराओं के बीच में अंगुली के आकर में माँ की ममतामयी मूर्ति है।
3. गणेश्वर
नीमकाथाना जिले से लगभग 10 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रंखला की सुरम्य वादियों के बीच बसे इस गांव के भवन निर्माण को देखते ही आभास हो जाता है कि यह एक प्राचीन गांव है। शहरी कोलाहल से दूर एकदम शांत जगह पहाड़ियों की गोद में यह गाँव बसा हुआ है।
गांवडी नामक गांव गणेश्वर के पास गांवड़ी नामक एक गाँव होने की वजह से, गणेश्वर को "गांवडी गणेश्वर" (Ganwari Ganeshwar) नाम से भी जाना जाता है। बरसात के मौसम में यहाँ चारो तरफ हरयाली की मनमोहक चादर पहाड़ियों को ढक लेती है जिससे यहाँ का प्राकृतिक परिवेश श्रद्धालुओं तथा पर्यटकों को बहुत लुभाता है।
गांवडी नामक गांव गणेश्वर के पास गांवड़ी नामक एक गाँव होने की वजह से, गणेश्वर को "गांवडी गणेश्वर" (Ganwari Ganeshwar) नाम से भी जाना जाता है। बरसात के मौसम में यहाँ चारो तरफ हरयाली की मनमोहक चादर पहाड़ियों को ढक लेती है जिससे यहाँ का प्राकृतिक परिवेश श्रद्धालुओं तथा पर्यटकों को बहुत लुभाता है।
गणेश्वर राजस्थान के जिला सीकर के अंतर्गत नीमकाथाना तहसील में ताम्रयुगीन सभ्यता का एक महत्त्वपूर्ण स्थल है। यहाँ से पुरातत्व विभाग को जो प्रचुर मात्रा में ताम्र सामग्री पायी गयी है, वह भारतीय पुरातत्त्व को राजस्थान की अपूर्व देन है। ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केन्द्रों में से यह स्थल प्राचीनतम स्थल है। इसीलिए इसे ताम्र सभ्यताओं की जननी भी कहा जाता है।
4. बालेश्वर धाम
जिले का प्रसिद्ध बालेश्वर धाम नीमकाथाना से 15 किमी दूर स्थित है। पूर्वी दिशा में अरावली पर्वतमाला की गहन उपत्यकाओं में पुरातात्त्विक महत्त्व के साथ आध्यात्मिक आस्था का अद्भुत महान तीर्थक्षेत्र है, जो स्वयंभू बालेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है. यहां प्राचीनकाल से ही आदिदेव स्वयंभू भगवान शिव के बालरूप की विशाल शिवलिंग के रूप मान्यता रही है.
वर्ष भर आस्थावान शिवभक्तों को बरबस ही बालरूप शिव का विशाल शिवलिंग अपनी ओर आकृष्ट कर उनकी हर मनोकामनाओं को पूर्ण करने का सामर्थ्य रखता है। लोकमान्यता है कि बालेश्वर महादेव स्वयंभू शिवलिंग है अर्थात् स्वयं धरती का सीना चीरकर प्रकट हुए हैं। सावन महीने में पहाड़ियां हरियाली से आच्छादित रहती हैं। तीर्थधाम बालेश्वर का प्रसिद्ध महादेव मंदिर पहाड़ी तलहटी में स्थित है। यहां राजस्थान, हरियाणा, पंजाब के अलावा देशभर के श्रद्धालु आते है. सावन महीने में तो करीब दो लाख भक्त महादेव के दर्शन करने आते हैं।